उड़ता हुआ इक बादल था By Ghazal << अँधेरों से अगर आईना-सामान... झुक सके आप का ये सर तो झु... >> उड़ता हुआ इक बादल था या फिर तेरा आँचल था चीख़ रहा था सड़कों पर शायद वो भी पागल था अब तो गंदा नाला हूँ पहले में गंगा-जल था आबादी से दूर बहुत हरा-भरा इक जंगल था मेरे जिस्म के अंदर ही शायद मेरा क़ातिल था Share on: