झुलसते लम्हों का लम्स ले कर मैं चल रहा हूँ ख़ुद अपनी दोज़ख़ की आग खा कर मैं पल रहा हूँ सफ़र की रूदाद भी मिरी कुछ अजीब सी है मैं अख़ज़री पहाड़ियों से गिर कर सँभल रहा हूँ मिरा वजूद ओ अदम भी इक हादसा नया है मैं दफ़्न हूँ कहीं कहीं से निकल रहा हूँ चिता बुझा दे कोई कोई अस्थियाँ बहा दे मैं आरज़ू में सहर की सदियों से जल रहा हूँ समुंदरों का स्वाद मेरी ज़बान पर है मैं सूँघ कर मछलियों की ख़ुशबू मचल रहा हूँ नहीं है 'मामून' साथ मेरे यहाँ पे कोई अकेला ही ज़िंदगी की राहों पे चल रहा हूँ