झुर्रियों की क़तार देखो तो उम्र से अपनी हार देखो तो हूक बे-इख़्तियार उठती है अपने जब इख़्तियार देखो तो झील कहते हो तुम जिन आँखों को उन में हैं आबशार देखो तो जाने क्या क्या नज़र वो आता है जब उसे बार बार देखो तो ग़ैर-मुमकिन है इत्तिहाद मियाँ क़ौम में इंतिशार देखो तो वस्ल से आप ही गुरेज़ाँ हों लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार देखो तो दो ही मिसरों में है मुकम्मल नज़्म वुसअ'त-ए-इख़्तियार देखो तो