जी चाहता है जीना जज़्बात के मुताबिक़ हालात कर रहे हैं हालात के मुताबिक़ जिस दर्जा हिज्र-रुत में आँखें बरस रही हैं ग़ज़लें भी उग रही हैं बरसात के मुताबिक़ सुख चैन और ख़ुशी का अंदाज़ा मत लगाओ अस्बाब ओ माल-ओ-ज़र की बुहतात के मुताबिक़ हो शहर के मुताबिक़ हासिल हर इक सहूलत माहौल पर सुकूँ हो देहात के मुताबिक़ देखो ख़ुलूस-ए-नियत जज़्बात और मोहब्बत मत चाहतों को तोलो सौग़ात के मुताबिक़ चादर ही के मुताबिक़ फैलाओ पाँव 'राग़िब' मेआर-ए-ज़ीस्त रक्खा औक़ात के मुताबिक़