कब निशाँ मेरा किसी को शब-ए-हस्ती में मिला मैं तो जुगनू की तरह अपनी ही मुट्ठी में मिला भाग निकला था जो तूफ़ाँ से छुड़ा कर दामन सर-ए-साहिल वही डूबा हुआ कश्ती में मिला आँख रौशन हो तो दुनिया के अँधेरे क्या हैं रस्ता महताब को रातों की सियाही में मिला मैं जलाता रहा तेरे लिए लम्हों के चराग़ तू गुज़रता हुआ सदियों की सवारी में मिला तू ने मंगतों को उचटती हुई नज़रें भी न दीं हाथ फैलाया न जिस ने उसे झोली में मिला मैं इक आँसू ही सही हूँ बहुत अनमोल मगर यूँ न पलकों से गिरा कर मुझे मिट्टी में मिला महफ़िलों में किया लोगों ने 'मुज़फ़्फ़र' की तलाश वो भटकता हुआ अफ़्कार की वादी में मिला