जी ढूँढता है घर कोई दोनों जहाँ से दूर इस आप की ज़मीं से अलग आसमाँ से दूर शायद मैं दर-ख़ुर निगह-ए-गर्म भी नहीं बिजली तड़प रही है मिरे आशियाँ से दूर आँखें चुरा के आप ने अफ़्साना कर दिया जो हाल था ज़बाँ से क़रीब और बयाँ से दूर ता-अर्ज़-ए-शौक़ में न रहे बंदगी की लाग इक सज्दा चाहता हूँ तिरे आस्ताँ से दूर है मनअ राह-ए-इश्क़ में दैर-ओ-हरम का होश यानी कहाँ से पास है मंज़िल कहाँ से दूर