जी जाए मगर न वो परी जाए यारब न हमारी दिल-लगी जाए दिल हिज्र में जाए या कि जी जाए जिस का जी चाहे वो अभी जाए इस गिल का न वस्ल हो न जी जाए क्यूँकि मेरे दिल की बे-कली जाए तुम लाल-ए-लब अपने गर दिखाओ फिर सू-ए-यमन न जौहरी जाए इस ग़ुंचा-दहन की बू न लाए दिखलाए न मुँह सबा चली जाए सौग़ात की तरह पेश-ए-मजनूँ बेड़ी और मेरी हथकड़ी जाए साबित है जब पहाड़-ए-वहशत जब तक दामन हमारा सी जाए ग़ैरों को तो मय पिलाए साक़ी मैं माँगूँ तो साफ़ सुन के पी जाए हम-राह हो परवरिश-ए-अली भी याँ से जो कर्बला 'सख़ी' जाए