जी कर तमाम ज़िंदगी ज़िंदा-दिली से हम क़िस्सा लिखेंगे तीरगी पे रौशनी से हम हम को नजात-ए-ग़म की तवक़्क़ो है ख़ुद से ही रखते नहीं उमीद जहाँ में किसी से हम लोगों ने जो सवाल-ए-वजूद अब तलक किए देंगे जवाब उन के मगर ख़ामुशी से हम आना है तो ख़ुद आए समंदर हमारे पास ले कर अना चले हैं ये लूनी नदी से हम ये ख़ाक जिस्म ख़ाक में मिल जाएगा मगर ज़िंदा रहेंगे मर के यहीं शायरी से हम इस 'आरज़ू' में उम्र गुज़ारी है आज तक इक दिन तो मिल ही जाएँगे अपनी ख़ुशी से हम