जी लिए पर मन नहीं भर पाए हम एक ख़ाली-पन नहीं भर पाए हम ख़ुद से रुस्वा हो गए हम और फिर ख़ुद में अपना-पन नहीं भर पाए हम दिल में जो कुछ भी था पत्थर हो गया आँखों में सावन नहीं भर पाए हम रूह जैसे साथ तेरे चल बसी बा'द तेरे तन नहीं भर पाए हम प्यार करना तो सिखाया था उसे पर दिवाना-पन नहीं भर पाए हम घर में जो बूढ़ा शजर था गिर गया फिर कभी आँगन नहीं भर पाए हम दिल जो इक सदमे ने बे-सुध कर दिया दिल में फिर धड़कन नहीं भर पाए हम