जिस्म थकता रहा मगर निकले इक सफ़र से कई सफ़र निकले 'इश्क़ निकला ख़तों ख़तों पहले और फिर इन ख़तों के पर निकले बस उसी की रही कमी छत पर चाँद तारे तो रात-भर निकले ऐसे निकला है वो कहानी से जिस्म से रूह जिस क़दर निकले मौत की ही कसर बची है अब एक ग़म और ये कसर निकले