जी रहा हूँ अभी तदफ़ीन से रोका जाए ज़िंदगी को मिरी तौहीन से रोका जाए अक़्ल ने दी है दुहाई कि बहर-तौर मुझे दिल की हर बात पे आमीन से रोका जाए सोलह-सिंघार उदासी ने किए हैं फिर से इस को आराइश ओ तज़ईन से रोका जाए ये किताबें तो मोहब्बत का सबक़ देती हैं इन को नफ़रत के मज़ामीन से रोका जाए रास्ते बंद किए जाता है दीवानों पर दश्त को ऐसे क़वानीन से रोका जाए गिर्या ये गिर्या-ए-याक़ूब से भी आगे का अब हमें सब्र की तल्क़ीन से रोका जाए ढाल की कोई ज़रूरत नहीं 'मसऊद' अगर वार को सूरा-ए-यासीन से रोका जाए