जिन लाशों पर जीने का इल्ज़ाम भी था उन की सफ़ में शामिल मेरा नाम भी था तुझ से मिल कर जब भी वापस लौटा हूँ याद आया कि तुझ से कोई काम भी था फिर वो मेरी ख़ाक बिछा कर लेट गया शायद मेरा क़ातिल बे-आराम भी था हम तो लिख कर नाहक़ ही बदनाम हुए जिन बातों का वैसे चर्चा आम भी था क़हत की आफ़त सारा गाँव चाट गई इस गाँव में ग़ल्ले का गोदाम भी था बस्ती क्या थी सिर्फ़ सरा-ए-इबरत थी शहर का शहर वो शर्म का एक मक़ाम भी था लोग मुझे दीवाना-वार रगड़ते थे मेरे अंदर शायद एक ग़ुलाम भी था रस्ते में मौजूद ख़लीजें नफ़रत की मेरे पास मोहब्बत का पैग़ाम भी था