जिधर हवाएँ चलीं उस तरफ़ चला मैं भी ज़माना-साज़ था मौसम-शनास था मैं भी तमाम लोग मुझे देखते रहे लेकिन तमाम लोगों को बस देखता रहा मैं भी मुझे फ़रेब न दो दिल-फ़रेब बातों से ज़माना हो गया मुझ को सँभल गया मैं भी वो आँधियों में अँधेरों में खो गया है कहीं चराग़ ले के उसे ढूँढता रहा मैं भी