हर कोई साएबान के नीचे है चाँद भी आसमाँ के नीचे है याद-ए-माज़ी है ख़ार का जंगल और दिल-ए-ना-तवाँ के नीचे है ज़लज़ले बिन ज़मीन हिलती है कुछ तो मेरे मकाँ के नीचे है शम्अ' की लौ नज़र नहीं आती इक धुआँ सा धुआँ के नीचे है या तो दिल पर चटान है 'किशवर' या वो आतिश-फ़िशाँ के नीचे है