जिधर नज़रें उठाएँ तीरगी है हमारी ज़िंदगी क्या ज़िंदगी है ये मंज़िल है तो ऐ असहाब-ए-मंज़िल ये मेरी रूह में क्या तिश्नगी है ये ग़म की इंतिहा है या वफ़ा की नज़र में प्यास होंटों पर हँसी है ये दिल में दर्द चमका या कोई याद ये कैसी आग की सी रौशनी है ख़िरद की इंतिहा मुझ से न पूछो जब उस की इब्तिदा दीवानगी है उसे ख़तरा है सिर्फ़ इक फ़स्ल-ए-गुल का ख़िज़ाँ को किस क़दर आसूदगी है