साँसों की टूटी सरगम में इक मीठा स्वर याद रहा यूँ तो सब कुछ भूल गया मैं पर तेरा घर याद रहा यूँ भी कोई मिलना है जो मिलने की घड़ियों में भी मिलने से पहले इस ज़ालिम दुनिया का डर याद रहा वर्ना मैं भी झुक ही जाता ज़ुल्म की अंधी चौखट पर अच्छा रहा कि मुझ को अपने शाइ'र का सर याद रहा होंटों से जो बात हुई वो नील-गगन तक जा पहुँची आँखों ने जो लिक्खा दिल पर अक्षर अक्षर याद रहा जिस के कारन त्याग तपस्या और तप को वन-वास मिला सोच रहा हूँ इक रानी को क्यूँ ऐसा वर याद रहा