जिधर रस्ता नहीं होता उधर रस्ता बनाते हैं इसी दुनिया में रह कर हम नई दुनिया बनाते हैं उन्हीं के दर पे दुनिया सर झुकाने पे है आमादा जो हँसती खेलती बस्ती को सन्नाटा बनाते हैं सफ़र का सिलसिला यूँ ही नहीं ज़िंदा है सदियों से हमारे ख़्वाब सहराओं में भी दरिया बनाते हैं कोई भी खेल हो हम खेलते हैं अपनी शर्तों पर जिसे मोहरा समझते हैं उसे मोहरा बनाते हैं न दीवारों से कुछ मतलब न सरहद अपनी राहों में मोहब्बत के उजाले से नया नक़्शा बनाते हैं