जिस्म से आरी लोगों ही का साया है रुत ये कैसी कैसा मौसम आया है कोई चीख़ फ़ज़ा में अब तो गूँजेगी सन्नाटों ने कितना शोर मचाया है इस रुत में भी प्यासी धरती प्यासी है इस रुत में भी बादल घिर कर आया है उस की ज़रूरत उस की अना पे हावी है मुझ से मिलने मेरे घर तक आया है पेड़ पे बैठे पंछी ने ये पूछा मुझ से शहर से 'सय्यद' क्यों जंगल में आया है