शराब-ए-नाब को मुँह से ज़रा लगा वाइ'ज़ मय-ए-तुहूर का मैं वस्फ़ सुन चुका वाइ'ज़ तिरी तरह नहीं तोड़ा कभी किसी का दिल जो हम ने तोड़ी भी तौबा तो क्या हुआ वाइ'ज़ मैं जानता हूँ हक़ीक़त बहिश्त-ओ-दोज़ख़ की ख़ुदा के वास्ते बातें न तू बना वाइ'ज़ गुनाह-गार हैं हम ज़ात है ग़फ़ूर उस की ख़ुदा ख़ुदा कर अरे तू नहीं ख़ुदा वाइ'ज़