जिगर के ख़ून से रौशन गो ये चराग़ रहा मिसाल-ए-माह चमकता तो दिल का दाग़ रहा बदल गया है ज़माना चली वो बाद-ए-सुमूम न गुल रहे न वो बुलबुल रही न बाग़ रहा हुज़ूर-ए-हुस्न से ख़ुशियाँ न मिल सकीं न सही मता-ए-ग़म से तो सद शुक्र बा-फ़राग़ रहा वो डाल दी ग़लत अंदाज़ इक नज़र तू ने कि मैं ज़मीं पे रहा अर्श पर दिमाग़ रहा न होगी बज़्म-ए-जहाँ में रसाई-ए-ज़ुल्मत यहाँ चराग़ से जलता अगर चराग़ रहा किसे था होश किसी की तलाश का 'रिज़वी' तमाम उम्र ही मैं दरपय-ए-सुराग़ रहा