जिन का किरदार सहीफ़ों की तरह होता है तज़्किरा उन का हदीसों की तरह होता है शब-ए-फ़ुर्क़त तिरी आँखों से छलकता हुआ दर्द फूल पर ओस के क़तरों की तरह होता है वादी-ए-फ़िक्र में बिखरा हुआ हर्फ़ों का वजूद दस्त-ए-क़िर्तास पे छालों की तरह होता है रूठना और मचलना कभी गुम-सुम रहना आदमी इश्क़ में बच्चों की तरह होता है टूटती रातों का बिखरा हुआ सन्नाटा भी दश्त में उड़ते बगूलों की तरह होता है