जिन के ज़ेर-ए-नगीं सितारे हैं कुछ सुना तुम ने वो हमारे हैं उन के आँखों के वो किनारे दो बे-करानी के इस्तिआरे हैं आँसुओं को फ़ुज़ूल मत समझो ये बड़े क़ीमती सहारे हैं जो चमकते थे बाम-ए-गर्दूं पर ख़ाक में आज वो सितारे हैं गर्मी-ए-शौक़ ने तिरी 'आसिफ़' उन के रुख़्सार ओ लब निखारे हैं