जिन के लिए ज़माने का हम ज़हर पी चले हो कर वो बद-गुमान ब-सद-बे-रुख़ी चले कुछ देर ठहरिए कि ज़रा दिल की बात हो आए अभी अभी हैं जनाब और अभी चले घर से निकल के हम तो सर-ए-दश्त आ गए देखें कहाँ तलक ये ग़म-ए-आशिक़ी चले जैसे कभी भी हम से कोई वास्ता न हो वो चल रहे हैं जैसे कोई अजनबी चले हम रह-रवान-ए-शौक़ को मंज़िल से क्या ग़रज़ हम को जिधर तुम्हारी डगर ले चली चले अपने लहू से ख़ूब हुए सुर्ख़-रू 'मजीद' हम पर हज़ार संग-ए-सितम आज भी चले