जीना मुश्किल है यहाँ आसान सब से ख़ुद-कुशी इस लिए लगती भली है ज़िंदगी से ख़ुद-कुशी इश्क़ तो अब नाम है इस का था पहले ख़ुद-कुशी इश्क़ करने वालों को मिलती है राह-ए-ख़ुद-कुशी कौन देता है किसी को हौसला याँ जीने का कह रहे इक दूसरे को कर ले प्यारे ख़ुद-कुशी एक मुद्दत बा'द आए आज वो महफ़िल में जब ज़िंदगी थी सामने फिर कैसे करते ख़ुद-कुशी ज़िंदगी के तजरबे कैसे मिले याँ पर 'शकेब' जो कि आख़िर ख़ुद से इक दिन कर ली तुम ने ख़ुद-कुशी तन किसी के पास है तो दिल किसी के साथ में सेज पर बैठे हुए वो कर रहे हैं ख़ुद-कुशी जीने की हसरत नहीं रस्ता या मंज़िल भी नहीं जी रहे हैं इस तरह बेहतर थी इस से ख़ुद-कुशी क़तरा क़तरा मरने से ‘माधव’ है बेहतर बस यही सोचता हूँ मैं लगा लूँ अब गले से ख़ुद-कुशी