जुदा शजर से किसी बर्ग को हवा न करे चमन में बाद-ए-मुख़ालिफ़ चले ख़ुदा न करे तमाम उम्र गुज़ारी है ग़म की राहों में दराज़ उम्र हो मेरी कोई दुआ न करे हज़ार ज़ब्त का आदी है दिल मिरा लेकिन सितम की बारिशें हद से कोई सिवा न करे बहुत ही तल्ख़ हैं यादें हमारे माज़ी की फिर आए दर्द का मौसम वही ख़ुदा न करे हैं उस के मक्र-ओ-रिया से सभी यहाँ वाक़िफ़ वफ़ा-परस्ती का दावा वो बेवफ़ा न करे शजर हूँ 'नस्र' किसी बे-गियाह सहरा का समर का मुझ से कोई शख़्स आसरा न करे