जीने का दरस सब से जुदा चाहिए मुझे अब तो निसाब-ए-ज़ीस्त नया चाहिए मुझे ऐ काश ख़ुद सुकूत भी मुझ से हो हम-कलाम मैं ख़ामुशी-ज़दा हूँ सदा चाहिए मुझे अब मेरे पास जुरअत-ए-इज़हार भी नहीं कैसे बताऊँ आप को क्या चाहिए मुझे सब खिड़कियाँ खुली हैं मगर हब्स है बहुत जाँ लब पे आ चुकी है हवा चाहिए मुझे