नज़र आए क्या ग़ुबार मह-ओ-कहकशाँ से आगे कोई कारवाँ है शायद मिरे कारवाँ से आगे कोई सर हो सर्फ़-ए-सज्दा कहाँ आज बे-इरादा कि ज़मीं ही बे-कशिश है तिरे आस्ताँ से आगे तिरी याद दस्तगीर-ए-दिल-ए-गम-ज़दा हुई है मुझे साथ ले चली है ग़म-ए-दो-जहाँ से आगे ये जहाँ ब-नाम-ए-जन्नत कहीं फिर न पेश आए वही क़स्र-ओ-बाग़ जो हैं मह-ओ-कहकशाँ से आगे तिरे गेसुओं की ख़ुशबू ये पयाम दे गई है कि नशात-बार साए हैं ग़म-ए-तपाँ से आगे कहें किस से हो गई है यहीं आ के ख़त्म दुनिया कि नहीं है कोई मंज़िल हरम-ए-बुताँ से आगे कटी एक उम्र-ए-फ़ुर्क़त सर-ए-बर्ज़ख़-ए-मोहब्बत कि चला न जा रहा था दिल-ए-ना-तवाँ से आगे वहीं दाइमी ख़ुशी के हैं छुपे हुए ख़ज़ाने जो पहाड़ी सिलसिला है यम-ए-बे-कराँ से आगे हिस-ए-बासिरा को 'मानी' जो समीअ'-ए-कैफ़ कर दे वो सुख़न-तराज़ नर्गिस है कहीं ज़बाँ से आगे