जीने की ख़्वाहिशों में कई बार मर गए यूँ अपनी दास्तान के किरदार मर गए काँटे निकालने में ही गुज़री है ज़िंदगी दिल में लिए ही हसरत-ए-गुलज़ार मर गए ऐ ज़िंदगी ये तेरा करिश्मा नहीं तो क्या हम मौत से ही पहले कई बार मर गए मौसम ख़िज़ाँ ही का था मगर हाल ये न था कैसी बहार आई कि अश्जार मर गए जिस की तलाश कीजिए मिल जाए क्या ज़रूर जीने की जुस्तुजू में कई यार मर गए सिक्के के साथ साथ जो पगड़ी उछल पड़ी जितने बचे थे हामिल-ए-दस्तार मर गए 'तालिब' रियाज़-ए-फ़न न रुके वर्ना देख ले तेरी तरह से कितने ही फ़नकार मर गए