जीने की तमन्ना है न मर जाने का ग़म है ऐ शहर-ए-हवस हम को इधर आने का ग़म है खो जाए कोई चीज़ तो ग़म करती है दुनिया हम को तो कोई चीज़ यहाँ पाने का ग़म है जीता हूँ कि मरता हूँ किसे फ़िक्र है मेरी लगता है मिरा ग़म किसी दीवाने का ग़म है दस्तार सलामत न रही ग़म है इसी का ज़ुल्फ़ों का हमें ग़म है न कुछ शाने का ग़म है परवाज़ से मुँह मोड़ के उतरे हैं ज़मीं पर कुछ दाम का ग़म है न हमें दाने का ग़म है