कितनी रातों से ये आलम है कि सोए नहीं हैं दिल उमडता है मगर हम हैं कि रोए नहीं हैं भीड़ में रहना तो हर चंद कि मजबूरी है भीड़ में रहते हुए हम कहीं खोए नहीं हैं इस बयाबाँ में कोई नख़्ल कहाँ बढ़ता है बीज हम ने भी यही सोच के बोए नहीं हैं अब वो तक़रीब भी आ पहुँची है नज़दीक मगर हम ने कपड़े भी अभी ठीक से धोए नहीं हैं