जिन्हें कि उमर भर सुहाग की दुआएँ दी गईं सुना है अपनी चूड़ियाँ ही पीस कर वो पी गईं बहुत है ये रिवायतों का ज़हर सारी उमर को जो तल्ख़ियाँ हमारे आँचलों में बाँध दी गईं कभी न ऐसी फ़स्ल मेरे गाँव में हुई कि जब कुसुम के बदले चुनरियाँ गुलाब से रंगी गईं वो जिन के पैरहन की ख़ुशबुएँ हवा पे क़र्ज़ थीं रुतों की वो उदास शाहज़ादियाँ चली गईं इन उँगलियों को चूमना भी बिदअतें शुमार हो वो जिन से ख़ाक पर नुमू की आयतें लिखी गईं सरों का ये लगान अब के फ़स्ल कौन ले गया ये किस की खेतियाँ थीं और किस को सौंप दी गईं