जिस दर पे तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा न रहेगा रिंदों के लिए क़ाबिल-ए-सजदा न रहेगा जाता तो है उस जल्वा-गह-ए-नाज़ में ऐ दिल क्या होगा अगर ज़ब्त का यारा न रहेगा परवाने को फूँका है तो ऐ शम्अ समझ ले तेरा भी कलेजा कभी ठंडा न रहेगा दीवाने को ज़ंजीर से गहरा है तअ'ल्लुक़ क्यूँ उस को तिरी ज़ुल्फ़ का सौदा न रहेगा परवर्दा-ए-तूफ़ाँ है मिरे दिल का सफ़ीना साहिल की तरह ये लब-ए-दरिया न रहेगा झुँझला के कहा उस ने ये आईना पटक कर मुँह इस में जो देखेगा वो यकता न रहेगा मरने की अदाओं से नहीं 'बर्क़' जो वाक़िफ़ रहते हुए ज़िंदा भी वो ज़िंदा न रहेगा