जिस घड़ी तेरे आस्ताँ से गए हम ने जाना कि दो जहाँ से गए तेरे कूचे में नक़्श-ए-पा की तरह ऐसे बैठे कि फिर न वाँ से गए शम्अ की तरह रफ़्ता रफ़्ता हम ऐसे गुज़रे कि जिस्म ओ जाँ से गए एक दिन मैं ने यार से ये कहा अब तो हम ताक़त-ओ-तवाँ से गए हँस के बोला कि सुन ले ऐ 'आसिफ़' यही कह कह के लाखों जाँ से गए