जिस जगह जम्अ तिरे ख़ाक-नशीं होते हैं ग़ालिबन सब में नुमूदार हमीं होते हैं दर्द-ए-सर उन के लिए क्यूँ है मिरा इज्ज़-ओ-नियाज़ मेरे सज्दों से वो क्यूँ चीं-ब-जबीं होते हैं उन की महफ़िल से तसव्वुर का तअल्लुक़ है हमें आँख कर लेते हैं जब बंद वहीं होते हैं तेरे जल्वों ने मुझे घेर लिया है ऐ दोस्त अब तो तंहाई के लम्हे भी हसीं होते हैं एतिकाफ़ इन दिनों है फ़र्ज़ सुना है 'सीमाब' रमज़ाँ आ गए मय-ख़ाना-नशीं होते हैं