मुमकिन ही न थी ख़ुद से शनासाई यहाँ तक ले आया मुझे मेरा तमाशाई यहाँ तक रस्ता हो अगर याद तो घर लौट भी जाऊँ लाई थी किसी और की बीनाई यहाँ तक शायद तह-ए-दरिया में छुपा था कहीं सहरा मेरी ही नज़र देख नहीं पाई यहाँ तक महफ़िल में भी तन्हाई ने पीछा नहीं छोड़ा घर में न मिला मैं तो चली आई यहाँ तक सहरा है तो सहरा की तरह पेश भी आए आया है इसी शौक़ में सौदाई यहाँ तक इक खेल था और खेल में सोचा भी नहीं था जुड़ जाएगा मुझ से वो तमाशाई यहाँ तक ये उम्र है जो उस की ख़ता-वार है 'शारिक़' रहती ही नहीं बातों में सच्चाई यहाँ तक