जिस का कोई न हो ख़ुदा होगा जिस का वो भी न हो तो क्या होगा हासिल-ए-मर्ग और क्या होगा इक नए ग़म का सिलसिला होगा आप मुँह फेर के हुए रुख़्सत ये न सोचा कि मेरा क्या होगा जिस ने दी है तुम्हें दुआ-ए-इश्क़ कोई मुझ सा ही दिल-जला होगा लाख सोचूँ न कह सकूँगा कुछ जब कभी उन का सामना होगा मैं ने क्या क्या कहा है क़ासिद से जाने क़ासिद ने क्या कहा होगा