जिस का राहिब शैख़ हो बुत-ख़ाना ऐसा चाहिए मोहतसिब साक़ी बने मय-ख़ाना ऐसा चाहिए रखता है सर-ख़ुश हमें एक चश्म-ए-मयगूँ का ख़याल हो न जो पैमाँ-शिकन पैमाना ऐसा चाहिए हो ख़याल-ए-दैर दिल में और न हो पास-ए-हरम आशिक़ों का मसलक-ए-रिंदाना ऐसा चाहिए इक निगाह-ए-नाज़ पर क़ुर्बां करे होश-ओ-ख़िरद इश्क़-बाज़ी के लिए फ़रज़ाना ऐसा चाहिए इस के दिल में सोज़ हो और उस के दिल में हो गुदाज़ शम्अ ऐसी चाहिए परवाना ऐसा चाहिए शम्अ साँ घुलते रहें हम और न हो उस को लगन 'मशरिक़ी' माशूक़ बे-परवाना ऐसा चाहिए