जिस क़दर हैं हुस्न की ज़ेबाइयाँ उस क़दर हैं इश्क़ की रुस्वाइयाँ मेरी जानिब है रुख़-ए-तस्वीर-ए-दोस्त लूट लीं इस ने मिरी तन्हाइयाँ देने वाले अब तो दामन भी नहीं इस क़दर तेरी करम-फ़रमाइयाँ हुस्न का नाज़-ए-पशेमाँ देख कर इश्क़ को आने लगीं अंगड़ाइयाँ हो गया मुश्किल तिरा पहचानना रोज़-अफ़्ज़ूँ हैं तिरी रानाइयाँ ग़म की शब 'कैफ़ी' मिरा कोई नहीं दूर मुझ से हो गईं परछाइयाँ