झाँक कर पर्दे से ये क्या कर दिया दिल में मेरे हश्र बरपा कर दिया दीदा-ए-तर में था पिन्हाँ राज़-ए-इश्क़ अश्क के क़तरों ने इफ़्शा कर दिया नग़्मा-ए-शीरीं ने मेरे दिल में आज दर्द मीठा-मीठा पैदा कर दिया पीते थे छुप-छुप के जाम-ए-सुर्ख़ हम आँख की सुर्ख़ी ने रुस्वा कर दिया बात थी इतनी सी लेकिन चर्ख़ ने इस को इक शैताँ का चरख़ा कर दिया आँख मेरी अब झपकती क्यों नहीं जाने तेरी आँख ने क्या कर दिया ख़ून के क़तरे हैं ये आँसू जिन्हें एक-एक क़तरे ने दरिया कर दिया वो सँवरते ही रहे शब भर 'करन' आते-आते ही सवेरा कर दिया