जिस की हमें तलाश थी मंज़िल यही तो है इस काएनात-ए-हुस्न की महफ़िल यही तो है नज़रों की ताब लाएँ कि थामें वो जाम-ए-मय साक़ी जहाँ में रिंद की मुश्किल यही तो है अब तीर है कमाँ में न ख़ंजर है हाथ में फिर भी हमारी जान का क़ातिल यही तो है देखी थी उस के हुस्न की आँखों से इक झलक तेरा असीर तब से हुआ दिल यही तो है अर्से से अहल-ए-सिद्क़-ओ-सफ़ा के लिए है दार सच बोलने का दह्र में हासिल यही तो है मौजों से बच के निकले तो ये कारवान-ए-दिल तूफ़ानों से घिरा हुआ साहिल यही तो है दा'वा है उस को इश्क़ का कुछ आज़माईए 'अख़्तर' है ये सज़ाओं के क़ाबिल यही तो है