जिस की रही तलाश हमेशा वो तू न हो मुमकिन है तू मिले तो कोई जुस्तुजू न हो तू ही बता ये इश्क़ का है कौन सा मक़ाम दिल को ये आरज़ू है तिरी आरज़ू न हो हुस्न-ए-तही-वफ़ा कभी इस फूल को भी देख जिस में जमाल-ए-रंग तो हो और बू न हो यूँ है किसी की कैफ़ियत-ए-चश्म की हवस जैसे कहें शराब नहीं या सुबू न हो ऐ दोस्त मेरे इश्क़ पे तन्क़ीद भी ज़रूर लेकिन ये सोच ले ये तिरी आबरू न हो हाथों में जो खिला है वो रंग-ए-हिना सही ख़ंजर को देख उस पे किसी का लहू न हो ऐ ज़ुल्फ़ फैल जा कि नुमाइश नहीं है ये हस्ती का क्या सुबूत जो ज़ौक़-ए-नुमू न हो 'शौकत' हम उस के दर्द-ए-तमन्ना को भूल जाएँ पर वो सितम-ज़रीफ़ भी तो रू-ब-रू न हो