झाँक कर ज़ात के अंदर ये तमाशा देखो शहर सहरा में कभी शहर में सहरा देखो बहते दरिया में नज़र आए हर इक बूँद अलग ये नहीं मो'जिज़ा गर बूँद में दरिया देखो सूफ़ियो मा'रिफ़त-ए-अहल-ए-सफ़ा तो ये है कभी इंसान में इंसाँ का सरापा देखो क़ुर्मुज़ी रंग लहू से है पसीना मेरा और अरबाब-ए-हवस रंग-ए-तमन्ना देखो उम्र भर तुम पे रहे अहल-ए-तमाशा का हुजूम उम्र भर तुम ये तमाशा खड़े तन्हा देखो ख़्वाब-साज़ों की है ईजाद-ए-हसीं ये उम्मीद सदा इस आइने में तुम रुख़-ए-ज़ेबा देखो गर वो ना-बीना हो कुछ हर्ज नहीं है 'शौकत' रहनुमा हो न मगर अक़्ल का अंधा देखो