जिस को अपना बना लिया तू ने उस को सब कुछ अता किया तू ने ऐ सितमगर ये क्या किया तू ने अपना घर भी जला लिया तू ने गुमरही में पड़े हुए थे लोग मंज़िलों का पता दिया तू ने पीछे पीछे जो मेरे चलते थे उन को आगे बढ़ा दिया तू ने पारसाई का जिस को दावा था उस को मय-कश बना दिया तू ने बुग़्ज़-ओ-नफ़रत का ये नतीजा है दोस्तों को भुला दिया तू ने हर किसी को हक़ीर समझे है ख़ुद को कितना गिरा दिया तू ने फ़िक्र मंज़िल की जब हुई 'राही' नक़्श-ए-पा ही मिटा दिया तू ने