जिस कूँ मुल्क-ए-बे-ख़ुदी का राज है है ज़मीं तख़्त और बगूला ताज है ख़्वाब में वो ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं देखनाँ हक़ में मेरे लैलत-उल-मेराज है देख कर लश्कर ग़नीम-ए-इश्क़ का किश्वर-ए-अक़्ल-ओ-ख़िरद ताराज है ऐ तबीब-ए-मेहरबाँ बीमार-ए-हिज्र शर्बत-ए-दीदार का मुहताज है यार की आँखों में है जैसी हया चश्म-ए-नर्गिस में कहाँ ये लाज है उस कमाँ-अबरू के तीर-ए-नाज़ का सीना-चाकों का जिगर आमाज है दिल मिरा तुझ ग़म सीं ऐ जान-ए-'सिराज' बेशतर बे-ताब कल सीं आज है