जिस को पास उस ने बिठाया एक दिन उस को दुनिया से उठाया एक दिन वस्ल की शब देखते उस माह को साल में भी वो न आया एक दिन सुब्ह-ए-नौमीदी हमारी शब की है उम्र गुज़री वो न आया एक दिन काम में मेरे हमेशा यार ने एक साअ'त का लगाया एक दिन मिस्ल-ए-बर्क़ इक शब हँसाया आप ने अब्र की सूरत रुलाया एक दिन याद-ए-ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ में भूले ख़्वाब-ओ-ख़ुर एक शब सोए न खाया एक दिन वो तप-ए-लर्ज़ा का दौरा हो गया एक दिन आया न आया एक दिन याद जिस ख़ुर्शीद-रू की है 'वक़ार' भूल कर भी वो न आया एक दिन