इश्क़ है उस ज़ुल्फ़ का सरताज आज है रसूल-ए-हुस्न की मेराज आज नोक-ए-मिज़्गाँ पर नहीं है लख़्त-ए-दिल दार पर खींचा गया हल्लाज आज तर्क चश्म-ए-यार के तेवर हैं और ख़िर्मन-ए-ताक़त का है ताराज आज तेग़-ए-अबरू कल पड़ी दिल पर मिरे तीर मिज़्गाँ का हुआ आमाज आज चूसे हैं उस के मिसी आलूदा-लब मैं ने नीलम का किया पुखराज आज वस्ल की मर्ज़ी थी कल उस शोख़ की फिर गया वो वक़्त-ए-इस्तिमज़ाज आज लिक्खा है जो वस्फ़ अबरू का 'वक़ार' शे'र-शे'री से न ले क्यूँ बाज आज