जिस ने मेरे सर पर तोहमत रक्खी है मैं ने उस के घर की इज़्ज़त रक्खी है बात अलग है फ़ाक़ा-मस्त फ़क़ीरों की ठोकर में दुनिया की दौलत रक्खी है अमृत जल ले जाओ कि उस ने हाथों में कुआँ खोदने-भर की ताक़त रक्खी है मैं ने तो दुत्कार दिया सौ बार उसे लेकिन उस ने मेरी इज़्ज़त रक्खी है सफ़र बहुत मुश्किल है पापी दुनिया का इज़्ज़त के पीछे ही ज़िल्लत रक्खी है मज़दूरों को फल से क्या लेना-देना उन के हिस्से में तो मेहनत रक्खी है घर के बाहर भीड़ लगी है मंगतों की जैसे मेरे घर में दौलत रक्खी है माँ का रुत्बा सब से ऊँचा है 'संजय' उस के पाँव के नीचे जन्नत रक्खी है