गर्द में अट रहे हैं एहसासात धीमे धीमे बरस रही है रात जल उठा इक चराग़-ए-शाम तो क्या बुझ गए बे-शुमार इम्कानात हाए माज़ी की दिल-नशीं यादें हाए खूँ-ख़्वार भेड़ियों की बरात च्यूंटियाँ जैसे ज़ेहन पर रेंगें उफ़ ये मेरे लतीफ़ एहसासात भूत बन कर मुझे डराती रहीं मेरी ना-आफ़्रीदा तख़लीक़ात कौन आया मिरे तआ'क़ुब में वही फ़िक्र-ओ-ख़याल के जिन्नात दफ़अ'तन किस ने क़हक़हा मारा ये अँधेरे में कौन है मिरे सात सरसर-ए-शब कहाँ कि पत्तों में कर्ब-ए-ग़म से कराहती है हयात मुझ से मुझ को न छीन कर ले जाए शाहज़ादी-ए-किश्वर-ए-ज़ुल्मात सुब्ह जागा तो याद भी न रहा रात थी चाँदनी कि चाँदनी रात तूदा-ए-रेग ओ नख़्ल-ए-ख़ुश्क-ए-चिनार छुप गई किस की ओट में बरसात ये दरख़्त-ए-कुहन लिसान-उल-ग़ैब और ये शाख़-ए-ख़ुश्क बर्ग-ए-नबात क्या यही है 'रईस'-अमरोहवी उड़ के आए हैं दूर से ज़र्रात