जिस तरफ़ देखिए तूफ़ान नज़र आने लगे शहर के शहर ही वीरान नज़र आने लगे जब से शीशों ने किया उन के हवाले ख़ुद को तब से पत्थर भी परेशान नज़र आने लगे मुख़्तसर हम ने किया ख़ुद को ज़रा सा ख़ुद में किस क़दर रास्ते आसान नज़र आने लगे मुफ़्लिसी में हुई पहचान मुझे अपनों की था गुमाँ जिन पे वो अंजान नज़र आने लगे इक क़दम ही तो बढ़ाया है हमारी जानिब आप को फ़ाएदे नुक़सान नज़र आने लगे देख कर मेरी तलब मेरा जुनून-ए-मंज़िल रास्ते कैसे परेशान नज़र आने लगे