जिस तरह प्यासा कोई आब-ए-रवाँ तक पहुँचे ढूँडते ढूँडते हम इस के मकाँ तक पहुँचे शर्त इतनी थी मोहब्बत में बदन तक पहुँचो हम जुनूँ-पेशा मगर यार की जाँ तक पहुँचे तेरी चौखट पे पलट आए तिरे दीवाने बे-अमाँ यानी उसी जा-ए-अमाँ तक पहुँचे चल पड़े हैं नई तहज़ीब के रस्ते हम लोग पानी कब देखिए ख़तरे के निशाँ तक पहुँचे शब की जागी हुई आँखों की तपिश पूछते हो ख़ाक हो जाए अगर ख़्वाब यहाँ तक पहुँचे ख़ैर हम तो वहीं ठहरे हैं कि बिछड़े थे जहाँ क़ाफ़िले वालो बताओ कि कहाँ तक पहुँचे कासा-ए-जिस्म उठा लाए तिरे शहर के लोग और ये कहने लगे ख़ेमा-ए-जाँ तक पहुँचे इश्क़ में ग़ैर यक़ीनी नहीं होता कुछ भी बात कुछ भी नहीं बस आप गुमाँ तक पहुँचे